Today being Ganga Dasami, Swami Ananda Saraswati has sent out a prayer message to everyone.
Message from Swamiji
Ganga Dussehra falls on the tenth day of the Shukla Paksha of Jyeshta month. Pleased with King Bhagirath’s penance, Mother Ganga descended to earth to purge the cursed souls of Bhagiratha’s ancestors on this day. Ganga Dasami is celebrated to mark the arrival of river Ganga on the Earth. Before descending on the Earth, Ganges was residing in the stoup of Lord Brahma. Hence, she has the purity of heaven. After descending on the Earth, the purity of heaven came along with her. Ganga Dasami is celebrated in commemoration of the day when Goddess Ganga arrived on Earth.
गंगा दशहरा स्तोत्रम्
ऊँ नम: शिवायै गंगायै शिवदायै नमो नम:।
नमस्ते विष्णुरूपिण्यै ब्रह्ममूर्त्यै नमोSस्तु ते।।1।।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै शांकर्यै ते नमो नम:।
सर्वदेवस्वरूपिण्यै नमो भेषजमूर्तये।।2।।
सर्वस्य सर्वव्याधीनां भिषक्छ्रेष्ठ्यै नमोSस्तु ते।
स्थास्नुजंगमसम्भूतविषहन्त्र्यै नमोSस्तु ते।।3।।
संसारविषनाशिन्यै जीवनायै नमोSस्तु ते।
तापत्रितयसंहन्त्र्यै प्राणेश्यै ते नमोSस्तु ते।।4।।
शान्तिसन्तानकारिण्यै नमस्ते शुद्धमूर्तये।
सर्वसंशुद्धिकारिण्यै नम: पापारिमूर्तये।।5।।
भुक्तिमुक्तिप्रदायिन्यै भद्रदायै नमो नम:।
भोगोपभोगदायिन्यै भोगवत्यै नमोSस्तु ते।।6।।
मन्दाकिन्यै नमस्तेSस्तु स्वर्गदायै नमो नम:।
नमस्त्रैलोक्यभूषायै त्रिपथायै नमो नम:।।7।।
नमस्त्रिशुक्लसंस्थायै क्षमावत्यै नमो नम:।
त्रिहुताशनसंस्थायै तेजोवत्यै नमो नम:।।8।।
नन्दायै लिंगधारिण्यै सुधाधारात्मने नम:।
नमस्ते विश्वमुख्यायै रेवत्यै ते नमो नम:।।9।।
बृहत्यै ते नमस्तेSस्तु लोकधात्र्यै नमोSस्तु ते।
नमस्ते विश्वमित्रायै नन्दिन्यै ते नमो नम:।।10।।
पृथ्व्यै शिवामृतायै च सुवृषायै नमो नम:।
परापरशताढ्यायै तारायै ते नमो नम:।।11।।
पाशजालनिकृन्तिन्यै अभिन्नायै नमोSस्तु ते।
शान्तायै च वरिष्ठायै वरदायै नमो नम:।।12।।
उग्रायै सुखजग्ध्यै च संजीवन्यै नमोSस्तु ते।
ब्रह्मिष्ठायै ब्रह्मदायै दुरितघ्न्यै नमो नम:।।13।।
प्रणतार्तिप्रभंजिन्यै जगन्मात्रे नमोSस्तु ते।
सर्वापत्प्रतिपक्षायै मंगलायै नमो नम:।।14।।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोSस्तु ते।।15।।
निर्लेपायै दुर्गहन्त्र्यै दक्षायै ते नमोSस्तु ते।
परापरपरायै च गंगे निर्वाणदायिनि।।16।।
गंगे ममाग्रतो भूया गंगे मे तिष्ठ पृष्ठत:।
गंगे मे पार्श्वयोरेधि गंगे त्वय्यस्तु मे स्थिति:।।17।।
आदौ त्वमन्ते मध्ये च सर्वं त्वं गांगते शिवे।
त्वमेव मूलप्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।
गंगे त्वं परमात्मा च शिवस्तुभ्यं नम: शिवे।।18।।
य इदं पठते स्तोत्रं श्रृणुयाच्छ्रद्धयाSपि य:।
दशधा मुच्यते पापै: कायवाक् चित्तसम्भवै:।।19।।
रोगस्थो रोगतो मुच्येद्विपद्भ्यश्च विपद्यत:।
मुच्यते बन्धनाद् बद्धो भीतो भीते: प्रमुच्यते।।20।।
सर्वान्कामानवाप्नोति प्रेत्य च त्रिदिवं व्रजेत्।
दिव्यं विमानमारुद्य दिव्यस्त्रीपरिवीजित:।।21।।
गृहेSपि लिखितं यस्य सदा तिष्ठति धारितम्।
नाग्निचौरभयं तस्य न सर्पादिभयं क्वचित्।।22।।
ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशमीहरस्तसंयुता।
संहरेत् त्रिविधं पापं बुधवारेण संयुता।।23।।
तस्यां दशम्यामेतच्च स्तोत्रं गंगाजले स्थित:।
य: पठेद्दशकृत्वस्तु दरिद्रो वापि चाक्षम:।।24।।
सोSपि तत्फलमाप्नोति गंगा सम्पूज्य यत्नत:।।25।।
।।इति श्रीस्कन्दमहापुराणे काशीखण्डे ईश्वरकथितं गंगादशहरास्तोत्रं सम्पूर्णम्।।